स्वास्थ्य सुरभि के इस अंक में हम चिकित्सा क्षेत्र के ऐसे शख्शियत से आपको रुबरू कराते हैं जिन्होंने चिकित्सा सेवा क्षेत्र में कार्य कर चिकित्सा के क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित किया है, इसी श्रेणी में इस अंक में हमारे साथ हैं डॉ. शोभा गुप्ता। डॉ. शोभा गुप्ता को दिल्ली में एक प्रतिष्ठित आईवीएफ विशेषज्ञ डॉक्टर और दिल्ली में प्रमुख बांझपन डॉक्टर माना जाता है। डॉ. शोभा गुप्ता, मदर्स लैप आईवीएफ सेंटर की निदेशक हैं, जो दिल्ली में अपना स्वयं का टेस्ट-टयूब बेबी सेंटर है। डॉ. शोभा गुप्ता जिन्हें दिल्ली में आईवीएफ विशेषज्ञ डॉक्टर के क्षेत्र में बेहतरीन सेवाओं में योगदान देने और दिल्ली में बांझपन के इलाज में प्रतिष्ठा मिली है। इन्होंने इस पेशे में अपनी सेवा प्रदान करने के लिए और 20 से अधिक वर्षों तक भारत में आईवीएफ डॉक्टर के रूप में लोकप्रियता हासिल की है, जो भारत में किसी भी आईवीएफ विशेषज्ञ के लिएकाफी उल्लेखनीय उपलब्धि है।
-आप महिला रोग विशेषज्ञा और आईवीएफ और सेरोगेट की चिकित्सा कर रही हैं तो आपके मदर्स लैप आईवीएफ सेंटर में प्रमुख रूप से किन-किन रोगों से संबंधित महिलाएं आती है और उनका समाधान आप कैसे करती हैं?
-हमारा मदर्स लैप आईवीएफ सेंटर हैंऔर यहां नि:संतान दम्पति चिकित्सा के लिए आते हैं और यहां नि:संतानता का इलाज किया जाता है। आपको जानकारी के लिए बता दें कि हमारे सेंटर में नि:संतान दम्पति को सिर्फ आईवीएफ तकनीकी से ही संतान सुख प्रदान नहीं किया जाता। निःसंतानता के लिए कई महत्वपूर्ण कारण होते हैं और इसी तरह इसका अलग-अलग चिकित्सा पद्वति द्वारा चिकित्सा प्रदान की जाती है
सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि बांझपन कहते किसे हैं। इसका जवाब है कि जब जोड़े में से एक वर्ष असुरक्षित यौन संबंध के बाद गर्भधारण करने में असमर्थ हैं। और गर्भावस्था नहीं हो रही है, तो आपको मूल रूप से एक आईवीएफ केंद्र, जहां सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं, बांझपन विशेषज्ञ के पास जाना चाहिए। कई दम्पतियों को इस बात की जानकारी नहीं होती है कि महिला कब संतान प्राप्ति योग्य है या किस समय पति-पत्नी संबंध बनाएं ताकि महिला गर्भवती हो सकती हैकभी-कभी छोटी समस्या के कारण भी दम्पति संतान सुख से वंचित रहते हैं तो उनका समाधान छोटे से इलाज हो जाता है। हम लोग चिकित्सा के साथ ही परामर्श भी प्रदान करते हैं। जब कोई नि:संतान दम्पति संतान प्राप्ति के लिए आते हैं तो हमलोग उनको काउंसलिंग के साथ ही विभिन्न तरह की जांच कर महिला क्यों नहीं गर्भवती हो रही है या बार-बार गर्भपात क्यों हो रहा है। कई बार यह पाया जाता है कि महिला के फेलोपियन ट्यूब में ब्लॉकेज है या महिला के शरीर में अंडा या तो बन नहीं रहा है या उसका पूर्ण विकास नहीं हो रहा है अथवा किस समय अंडा परिपक्व हो रहा है और अगर उस समय संबंध नहीं बनाते हैं तो भी महिला गर्भवती नहीं हो सकती। अंडा बनने और उसके विकसित होने के मध्य 24 घंटे का समय होता है अगर इस समय पति-पत्नी संबंध बनाते हैं तो महिला के गर्भवती होने का चांस ज्यादा होता है। इन सब कारणों पर हम लोग परामर्श भी प्रदान करते हैं। कहने का मतलब है कि नि:संतानता का कोई भी कारण हो सकता है और हमारे मदर्स लैप आईवीएफ सेंटर में सबका निदान किया जाता है। हमारे यहां सिर्फ महिलाओं का ही नहीं पुरुषों में भी नि:संतानता का समाधान चिकित्सा द्वारा किया जाता है। कई बार यह पाया जाता है कि महिला संतान प्राप्ति के लिए बिल्कुल योग्य है लेकिन उनके पति के शुकाणु में कमी है या तो शुक्राणु की गति बहुत कम है या अन्य विकार पाया जाता है इन समस्याओं का भी इलाज किया जाता है।
इसके अलावे महिलाओं में जनन संबंधी कई अन्य रोगों के समाधान के लिए महिलाएं आती हैं और उनकी समस्या का समुचित समाधान किया जाता है। आपको जानकारी के लिए बता दें कि हालांकि बांझपन रोग से ग्रसित महिलाएं ही विशेष रूप से आती हैं लेकिन समाज में लोगों में यह धारणा है कि बांझपन के लिए सिर्फ महिलाएं ही जिम्मेदार है जबकि चिकित्सा विज्ञान ने यह साबित कर दिया है कि इसके लिए 50-50 प्रतिशत महिला एवं पुरुष दोनों ही समान रूप से जिम्मेदार है। महिलाओं में बांझपन के लिए सिस्ट का न बनना, फायब्राइड की सामान्य समस्या, फेलोपियन ट्यूब का ब्लॉकेज इत्यादि होता है जबकि पुरुषों में शुक्राणु का कम बननाया न बनना अथवा शुक्राणु में बच्चे पैदा न करने की क्षमता समस्या पैदा करती है। इसके अलावा कई बार देखा जाता है कि पुरुषों में शुक्राणु दोष है या महिला के अंडाणु में समस्या है तो इस समस्या के लिएडोनर के माध्यम इसकी पूर्ति की जाती है
-आज चिकित्सा विज्ञान ने काफी तरक्की कर ली हैइसी के परिणामस्वरूप नि:संतान दम्पति को संतान सुख प्राप्त करने का एक जरिया आई.वी.एफ. तकनीक तकनीक विकसित हो पाई है यह क्या है और इसके बारे में बताएं?
आई.वी.एफ. तकनीक नि:संतान दम्पति को संतान सुख प्राप्त करने का एक जरिया ही नहीं वरदान साबित हो रही है। जहां तक इसके तकनीक की बात है तो बच्चा जिसे भ्रूण कहते हैं जो कि साधारण रूप से माता के गर्भ में बनता है उसे हम लेब्रोरेटरी में विकसित करते हैं। इस तकनीक में जिस महिला को आई.वी.एफ. करनी है उसे 15-20 दिन तक एक इंजेक्शन लगाते हैंऔर इसके बाद तीन-चार बार अल्ट्रासाउंड द्वारा इस बात का पता लगाया जाता है कि अंडा कितना व किस आकार का बन रहा हैकभी-कभी महिलाओं का रक्त की कमी हो जाती है तो इस बात का भी पता लगाया जाता है कि महिला के गर्भधारण व गर्भ उत्पति के दौरान रक्त की कमी तो नहीं हैअगर रक्त की कमी है तो उसकी भी चिकित्सा की जाती है।
इसके अलावे उस महिला को हारमोन का इंजेक्शन भी दिया जाता है और उसका कितना प्रभाव महिला पर पड़ रहा है की जांच की जाती हैइन प्रक्रिया के बाद वह महिला गर्भधारण के लिए तैयार हो जाती हैजब अंडे का साइज 18 मिलीमीटर हो जाए और बच्चेदानी के अंदर का लाइनिंग 7 मिलीमीटर कास कर जाती है और रक्त यानि प्रोजेस्ट्रान का वैल्यू 1.2 से कम होना चाहिए। यह सभी प्रक्रिया विशेषज्ञों के देखरेख में एवं तकनीकी रूप से की जाती है। इस प्रक्रिया के बाद महिला का एक छोटा सा ऑपरेशन किया जाता है जिसमें महिला को बेहोश किया जाता है
यह प्रकिया 10-15 मिनट का होता है। एक छोटी सी सूई के माध्यम से महिला के बच्चेदानी से अंडा निकाली जाती है और इस अंडे को माइक्रोस्कोप द्वारा जांचा-परखा जाता है और इस जांच में यह पाया जाता हैकि अंडा का आकार ठीक है तो औरत के पति का स्पर्म लेकर अंडा में डालकर लेब्रोरेटरी में भ्रूण बनाते हैं और इस भ्रूण को बच्चेदानी की तरह एक मशीन होता है जिसे इन्क्यू वेटर कहते हैं में पलने देते हैं। इन्क्यूबेटर में इस भ्रूण को पांच दिन के लिए रखा जाता है तत्पश्चात भ्रूण को औरत के बच्चेदानी में डाला जाता है। दो सप्ताह बाद इस बात का पता लगाया जाता है कि महिला के बच्चेदानी उस भ्रूण को स्वीकार किया या नहीं और महिला गर्भवती हुई अथवा नहीं। अगर महिला का बच्चेदानी उस भ्रूण को स्वीकार कर लिया और रिपोर्ट सही आया तो महिला अब गर्भवती है अगर बच्चेदानी भ्रूण को स्वीकार नहीं किया तो फिर से वही प्रकिया करनी पड़ती है।
इन दिनों आईवीएफ की सफलता की दर बहुत अच्छी है और विशेष रूप से हमारे केंद्र में, यह शानदार है क्योंकि हम सही इलाज करते हैं। मूल रूप से, हम रोगी के जीवनशैली को संशोधित करते हैं हम तनाव के स्तर को भी संशोधित करते हैं और फिर हम उनका इलाज करते हैं और सफलता की दर बहुत अच्छी है। पुरुष बांझपन के मामलों में, इंट्रा-साइटोप्लाज्मिक शुक्राणु इंजेक्शन एक बहुत अच्छी तकनीक है जिसे चुना जाना चाहिए। इसमें, हम सीधे शुक्राणु को इंजेक्ट करते हैं और फिर हम पत्नी के गर्भ में भ्रूण बनाते हैं और वे बहुत आसानी से गर्भधारण करते हैं। इंट्रा-साइटोप्लामिक शुक्राणु इंजेक्शन वह मूल तकनीक है, जिसका इस्तेमाल आलिगस्पर्मिया की तरह किया जाना चाहिए, जहां गिनती कम हो जाती है और गतिशीलता कम हो जाती है। मान लीजिए, महिला उचित समय पर डिंबोत्सर्जन नहीं कर रही है, इसलिए हम कुछ दवाएं करते हैं ताकि आप ओव्यूलेट कर सकें और फिर हम निगरानी करते हैंऔर फिर हम आपको उपजाऊ अवधि बताते हैं। यदि शुक्राणु की संख्या कम हैऔर ओव्यूलेशन उचित नहीं है, तो हम आपको कुछ इंजेक्शन दे सकते हैं ताकि अंडा फट जाए और हम आईवीएफ यानी इंटा यटेराइन इनसेमिनेशन कर सकें। इंट्रा-साइटोप्लामिक शुक्राणु इंजेक्शन दसरा विकल्प है अगर टयूब अवरुद्व हैं और यदि बांझपन 3 से 4 साल की अवधि से अधिक है
- आज के बढ़ते तनाव और भागदौड़ और बदलती जीवनशैली का एक कारण बांझपन भी है और वर्तमान समय में यह एक प्रमुख रोग बनती जा रही है तथा यह रोग और जटिलतम होती जा रही है इस बीमारी का निदान क्या है ?
यह सच है कि आज के बढ़ते तनाव और भागदौड़ और बदलती जीवनशैली का एक कारण बांझपन भी है और आज के समय में यह एक प्रमुख राग बनता जा रहा है और यह रोग और जटिलतम होती जा रही है। महिलाओं और पुरुषों दोनों में बांझपन की समस्या बढ़ती जा रही है। मेडिकल काउंसिल के एक रिसर्च के रिपोर्ट के अनुसार इस समय 1 करोड़ 80 लाख ऐसी महिलाएं हमारे देश में जिनमें यह समस्या है। इसका प्रमुख कारण वर्तमान जीवनशैली ही है। आज लड़के-लड़कियां अपने कैरियर बनाने में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि शादी समय पर नहीं करते और जब वे शादी करते हैं तब तक तब तक 30-35 वर्ष के हो जाते हैंएक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ एवं कैरियर बनाने के होड़ में तनाव ले रहे हैं पूरी नींद न ले पाना, देर रात तक काम करना, पार्टी करना, शराब-सिगरेट एवं अन्य जीले पदार्थ जंकफड, फास्टफड, कोल्डड्रिंक का सेवन करना, मोबाइल का व्यापक उपयोग करना, साथ ही स्वस्थ आहार का सेवन नहीं कर रहे हैं परिणामतः महिला में हारमोनल समस्या उत्पन्न हो रही है और पुरुषों की शुक्राणु की गति पर प्रभाव पड़ रहा है परिणामस्वरूप आज बहुत सारे युवा दम्पति नि:संतानता की ओर बढ़ रहे हैं।
आज के समय में महिलाएं शारीरिक मेहनत का कोई काम नहीं करती है, घर एवं ऑफिस के काम में व्यस्त होने के कारण वे फास्टफड का ज्यादा सेवन करती है पति परिणामतः वजन बढ़ना, खाने में शक्कर की मात्रा ज्यादा लेने के कारण ओवरी में जो अंडे बनने की प्रक्रिया होती है जिसे ओव्यूलेशन कहते हैं उसमे समस्या आ जाती है। परिणामतः महिलाएं बांझपन की शिकार हो जाती हैंइसके अलावे फेलोपियन ट्यूब में किसी कारण से अवरोध उत्पन्न होना संतान उत्पति में बाधक बनती है। अगर इन सब बातों का ध्यान रखकर स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर हम बांझपन की समस्या से मुक्ति पा सकते हैं। कुछ समस्या तो ऐसी होती है कि मानव निर्मित नहीं होती है। हमारे पास बहुत तरह के दम्पति आते हैं जिनका हमने शुक्राणु टेस्ट, टयूब टेस्ट एवं सभी प्रकार की जांच करते हैं तो पाया जाता है कि महिला के समय पर अंडे भी बन नहीं रहे हैं और पूर्ण विकसित भी हो रहे हैं, ट्यूब भी खुली हुई है, पति का शुक्राणु भी ठीक है बावजूद वे संतान सुख से वंचित है तो ऐसी स्थिति में उनकी जीवनशैली सुधारकर एवं कुछ दवाएं देकर गर्भधारण करवाते हैं। लेकिन अगर महिला का फेलोपियन ट्यूब ब्लॉक है तो इसमें जीवनशैली सुधारने से भी कुछ हासिल होने वाला नहीं है।
आजकल महिलाओं में एक बीमारी बढ़ उही है वह है पीसीओडी (पोलिस्टिक ओवेस्टी सिंड्रोम)। यह बीमारी जीवनशैली से जुड़ी बीमारी है इसमें महिलाओं में मुख्यतः मोटापा बढ़ना, अनचाहे बाल आना, अनियमित माहवारी, अंडा न बनना होता है। इस बीमारी में जीवनशैली सुधारने, पौष्टिक आहार एवं योग व्यायाम करने से पीसीओडी के निदान में काफी सहायता मिलती है। आज की महिलाओं में थायराइड की समस्या देखी जा रही है जो तनाव के कारण उत्पन्न होती है। थायराइड की बीमारी को भी जीवनशैली में सुधार लाकर मुक्ति दिलाई जा सकती है। हारमोन संबंधी समस्या को भी पौष्टिक भोजन एवं जीवनशैली में सुधार लाकर मुक्ति पाई जा सकती है। आज से पांच-सात साल तक यह माना जाता था कि 30 प्रतिशत पुरुष एवं 30 प्रतिशत महिला साथ ही 30 प्रतिशत में पुरुष एवं महिला दोनों ही बांझपन के लिए जिम्मेदार होते है, लेकिन आज यह मान्यता बदल गई है। आजकल पुरुषों में बांझपन की समस्या ज्यादा पाई जाने लगी है। इसका कारण मुख्यतः प्रदुषित वातावरण, नशा पान करना एवं मोबाइल का अधिक प्रयोग करना है। इन कारणों से आज पुरुषों में बांझपन की प्रतिशत 45 से 50 प्रतिशत तक हो गई है।
-संतान प्राप्ति का एक एक और साधन है वह है सेरोगेसी। सेरोगेसी क्या है और इसका प्रावधान क्या है?
सेरोगेसी हमारे समाज के लिए कोई नई बात नहीं है। कभी-कभी हम देखते हैं कि कोई महिला किसी कारण से गर्भधारण करने में असमर्थ होती है। हमारे देश में लाखों में कोई एक-दो महिलाएं होती हैं जो बिना बच्चेदानी की पैदा होती है। आज तक लगभग चार हजार महिलाओं का इलाज किया जा चुका है। कुछ महिलाएं ऐसी होती है जिनका फायब्राइड या किसी ऑपरेशन की वजह से बच्चेदानी को निकाल दिया जाता है या फिर टीबी या कैंसर जैसे रोग के कारण बच्चेदानी पूरी तरह खराब हो जाती है ऐसी स्थिति में उस औरत के लिए मातृत्व सुख प्राप्त कर पाना नामुमकिन हो जाता है। ऐसी स्थिति में में वह अपने बच्चे को पाने और अपना मातृत्व सुख प्राप्त करने के लिए अपने बच्चे को किसी अन्य महिला के गर्भ में 9 महीने के लिए पाल सकती है और चिकित्सा विज्ञान में इसे ही सेरोगेसी या किराए का मातृत्व का नाम दिया गया है। यह दूसरी औरत कोई भी हो सकती है वह या तो उनके परिवार की सदस्य, मित्र या कोई अन्य महिला हो सकती है जो उस दम्पति को सहायता करना चाहती हो। उस महिला के माध्यम से दम्पति अपने बच्चे का सपना साकार कर सकता है
-सेरोगेसी में मुख्यतः किन-किन समस्याओं से सामना करना पड़ता हैऔर इसके कानूनी प्रावधान क्या है?
जब हमारे पास कोई दम्पति सेरोगेसी के लिए आते हैं तो 99 प्रतिशत दम्पतियों के पास ऐसी कोई औरत अपने रिश्तेदार या मित्रों में नहीं होती जो उन दम्पति के बच्चेको अपने गर्भ में पाल सकें। साथ ही वे इस बात को किसी को बताना ठीक नहीं मानते क्योंकि ऐसे मामले में अपनी सभी निजी समस्याओं को, अपनी पूरी जानकारी, कमियों को अपने परिवार व संबंधियों को बतानी पड़ेगी। जिससे समाज में उस महिला या दम्पति के प्रति गलत नजरिया हो सकती है और उनकी समस्या और बढ़ सकती है। इस कारण से कोई इस बात का उल्लेख अपने रिश्तेदारों के बीच नहीं करना चाहता। साथ
ही ऐसा हमलोगों ने देखा है कि कम दम्पतियों को ऐसे मामले में अपने परिवार एवं संबंधियों से सहयोग मिल पाता है और फिर उन्हें इस मामले में हमारे पास आना पड़ता है और हम लोग इस मामले में सहायता करते हैंहमारे देश में अन्य बैंकों की तरह सेरोगेट मदर के लिए भी सेरोगेसी बैंक है जो दम्पति के लिए सेरोगेट मदर की व्यवस्था करती हैइसमें आपको उस महिला को 9 माह तक आर्थिक सहायता प्रदान करनी होती है और सेरोगेट मदर बच्चे पैदा करने के बाद उस दम्पति को सौंप देते हैं। ऐसा नहीं हैं कि आप सेरोगेट मदर को आर्थिक सहायता प्रदान कर रहे हैं तो उसको हर्जाना नहीं दे रहे हैंवरन उसे अपनी सेवा के बदले आप भी उसकी सहायता कर रहे हैं।
लेकिन अब भारत सरकार द्वारा एक कानून पारित किया गया जिसमें कहा गया है कि आप ऐसी सेवाएं किसी अन्य महिलाओं से नहीं ले सकते इस सेवा को अपने रिश्तेदारों या निजी संबंधियों से ही ले सकते हैं साथ ही आप उस सेरोगेट मदर को किसी तरह का आर्थिक सहायता भी प्रदान नहीं कर सकते। इस कानून में यह भी कहा गया है कि अगर आपके पास एक बच्चा है तो आप दूसरा बच्चा सेरोगेसी के माध्यम से प्राप्त नहीं कर सकते। इस तरह का कानून बिना किसी से बात किए बिना लागू कर दिया जाना मेरे हिसाब से सही नहीं है। मेरे हिसाब से इस कानून में बदलाव लाने की आवश्यकता है।
-महिलाओं में स्वास्थ्य जागरुकता का अभाव होता है, ऐसे में उनमें स्वास्थ्य जागरुकता के लिए आप क्या प्रयास कर रही है?
हमारे देश में स्वास्थ्य जागरुकता का बहुत अभाव है। कई बार हमारे पास आते हैंतो हम लोग देखते हैं कि उनका स्वर्णिम काल खत्म हो चुकी हैहमें यह समझना आवश्यक है कि जिस बीमारी के विशेषज्ञ हैं उस बीमारी से संबंधित रोग के मरीज को उनके पास जाना चाहिए जबकि जागरुकता के अभाव में नि:संतान दम्पति जगह-जगह भटकने के बाद नि:संतानता निदान केंद्र में पहुंचते हैं। तब तक काफी देर हो चुकी होती हैस्वर्णिम काल से हमारा मानना है कि 27 से 27 उचित आईवीएफ प्रतिशत स्वर्णिम काल से हमारा मानना है कि 27 32 साल तक स्वस्थ संतान पाने का उचित समय होता है। अगर इस दौरान आईवीएफ भी किया जाए तो सफलता की प्रतिशत काफी अधिक होती है।
हमारे मदर्स लैप आईवीएफ सेंटर में समय-समय पर स्वास्थ्य जागरुकता कार्यक्रम आयोजित की जाती रहती है। इसके अलावे हमने कई मेडिकल जर्नल्स जो बांझपन के मुद्दों के बारे में हैं लिखती और इस विषय पर कई टेलीविजन टॉक शो में अतिथि के रूप में अपने विचार प्रस्तुत करती हूं। मेरे कई लेखन प्रतिष्ठित बहुत सारे दम्पति जब हमारे पास आते तब तक काफी देर हो चुकी होती है इसलिए हर काम समय से हो तो अच्छा है। कई बार दम्पति को संतान सुख प्राप्त नहीं हो रहा तो उनकी शादी टूटने कगार पर आ जाती और वे अपना धन व समय दोनों ही खत्म कर चुके होते हैं इसलिए मेरा कहना है सही समय पर और सही जगह इलाज कराया जाए तो समस्या का समाधान सही समय पर मिल सकता है